रविवार, 23 अक्तूबर 2016

कबड्डी बनाम मीडिया!



भारत ने कबड्डी विश्वकप के फाइनल में ईरान को हराकर आठवां विश्वकप अपने नाम कर लिया। इस जीत पर भारतीय क्रिकेटर विरेन्द्र सहवाग ने ट्विटर पर टीम को बधाई दी। इसके बाद विरेन्द्र सहवाग और ब्रिटिश पत्रकार पियर्स मॉर्गन के बीच ट्विटर पर ही बहस छिड़ गई।

ब्रिटिश पत्रकार पियर्स मॉर्गन ने ट्वीट करते हुए लिखा कि- कबड्डी कोई खेल नहीं है। यह सिर्फ कुछ वयस्क लोगों का भार है जो चारों तरफ दौड़ते हैं और एक दूसरे को स्लैपिंग करते रहते हैं।
कबड्डी को लेकर ब्रिटिश पत्रकार की यह मानसिकता तो ट्विटर पर जाहिर हो गई। लेकिन भारतीय मीडिया ने अपने देश के इस खेल को कितना महत्व दिया, यह जानकर काफी निराशा हुई।

भारत के कबड्डी वर्ल्ड कप जीतने की खबर रेडियो पर सुनकर विस्तृत समाचार के लिए सुबह के अखबार का इंतजार था। लेकिन सुबह जब अखबार हाथ में आया तो प्रथम पेज के किसी भी कोने में यह खबर छपी नहीं मिली कि भारत ने कबड़डी का विश्वकप जीत लिया है।

जीत की खबर सुनने के बाद उम्मीद तो यह थी कि अखबार के प्रथम पेज पर छपा खिलाड़ियों के हाथ में विश्वकप की ट्राफी और पीछे की आतिशबाजी का दृश्य देखने को मिलेगा लेकिन प्रथम पेज से तो जीत की खबर ही गायब थी।

किसी भी खेल का विश्वकप जीतना मामूली बात नहीं होती, और हमें ऐसे दृश्य देखने की लत भी तो मीडिया की देन है। अन्य खेलों में विश्वकप जीतने पर प्रथम पेज इतनी बड़ी फोटो से ढंक जाता है कि बाकी खबरें पढ़ने के लिए पेज पलटना पड़ता है।

हद तो तब हो गई जब खेल पृष्ठ पर भी कबड्डी विश्वकप जीतने की छोटी सी खबर के साथ खिलाड़ियों की फोटो को कंडेन्स करके लगाया गया था। प्रथम पेज के लिए ना सही लेकिन खेल पृष्ठ के लिए कबड्डी वर्ल्ड कप की जीत से बड़ी खबर शायद कोई और नहीं थी। बाकी समाचार पत्रों का भी यही हाल था। कुछ हिन्दी समाचार पत्रों ने पाठकों को प्रथम पृष्ठ पर यह जानकारी जरूर दे दी थी कि भारत वर्ल्ड कप जीत गया है लेकिन फोटो नदारद थी। सच! अब मीडिया ही तय करता है कि आपके जीवन में किस खेल का कितना महत्व होना चाहिए।

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