शनिवार, 22 अक्तूबर 2016

रहिमन इस संसार में भांति-भांति के लोग….



जीवन में कभी-कभी किसी भी परिस्थिति में एडजस्ट करने की आदत इस कदर लग जाती है कि हम उस परिस्थिति में तिल-तिल मरने और घुटने के बाद भी उससे बाहर नहीं निकलना चाहते हैं।
हॉस्टल के उस कमरे में शिफ्ट होने से पहले मुझे यह बात नहीं मालूम थी कि मुझे जिस लड़की के साथ रहना है उसका कुछ साल पहले एक्सीडेंट हो चुका है। सिर में चोट लगने की वजह से वह कभी-कभी पागलों की तरह हरकतें करने लगती है। 

हॉस्टल में शिफ्ट होने के कुछ दिन बाद मैंने देखा कि मेरी रूम मेट थाली में पूरा का पूरा दाल-चावल एक साथ मिलाकर मुट्टी भर-भर के उठाकर खा रही थी और कुछ जमीन पर गिरा रही थी। सीन पूरा फिल्मी था...खाना खत्म होने के बाद कभी-कभी वह जोर से हंसा भी करती थी और गर्दन से लेकर गाल तक दाल-चावल चिपका लेती थी।

ताज्जुब की बात यह थी कि ऐसी स्थिति रोज नहीं होती थी। लेकिन हां...परेशान करने के और भी तरीके थे उसके पास। अंधेरा होने पर लाइट नहीं जलाने देती थी...मुझे बुखार हो जाने पर वह कूलर चलाकर सोती थी। कमरे में ऐसे चलती थी कि दो-चार सामान उसके हाथ से टकराकर जमीन पर गिर जाते। मना करने का उसपर कोई असर नहीं होता था।

काफी दिमाग लगाने के बाद भी मुझे ठीक-ठीक समझ में नहीं आया कि वह मुझे परेशान करने के लिए ऐसा करती है या फिर एबनॉर्मल होने की वजह से। हॉस्टल की बाकी लड़कियों के लिए वह एक नॉर्मल लड़की ही थी..वह अन्य लड़कियों से हंसी-मजाक करती, घूमने और शॉपिंग पर जाती...वह सब कुछ करती जिससे इस बात का पता चलता कि उसे कुछ नहीं हुआ है..लेकिन कमरे में ऐसा तांडव मचाती कि मैं हर रात यह ठान कर सोती कि बस अब बहुत हो चुका, अगली सुबह मैं इस कमरे को छोड़ दूंगी।

सुबह उठते ही जब किसी काम से हॉस्टल से बाहर निकलना पड़ता और मूड थोड़ा रिफ्रेश होता तो मेरी प्रतिज्ञा भी वहीं धरी की धरी रह जाती। इस तरह मैंने उसके साथ एडजस्ट करने में छह महीने गुजार दिए।

उस कमरे में वह अंतिम रात थी। मैं सो रही थी...रात के तीन बजे बर्तन गिरने की आवाज से मैं डर गई और तुरंत उठकर बैठ गई। इतनी रात को वह मैगी बना रही थी, कमरे की खिड़की और दरवाजा बंद था..गंध कमरे में भरी थी...मैगी बन जाने के बाद वह चाय बनायी...उसके बाद खूंटी पर टंगा शीशा उतारी और बेड पर बैठकर अपनी आंखों में काजल लगाने लगी...काफी डरावना सीन था वह। मैं सो तो नहीं पायी लेकिन रोना इतना आ रहा था कि एक बूंद आंसू नहीं गिरा मेरे आंख से।

अगली सुबह भारी मन से मैंने अपना सामान पैक किया और दूसरे कमरे में शिफ्ट हो गई। जब अपना सामान लेकर मैं कमरे से बाहर निकल रही थी तो वह मेरी आंखों में आंखे डालकर जोर से हंसी। शायद वह मुझे भगाने में सफल हो गई थी।

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