शुक्रवार, 8 जनवरी 2016

दो चूहों की मौत

अपनी जिंदगी में मैंने किसी भी इंसान को मरते हुए नहीं देखा, जब भी देखा मरने के बाद ही देखा। ठीक ऐसे ही मैंने किसी जानवर को भी मरते हुए नहीं देखा बल्कि मरने के बाद ही देखा। लेकिन मेरा ऐसा कोई अरमान कभी नहीं रहा कि मैं किसी को मरते हुए देखूं।

जैसा कि चूहों से तंग आकर इनका बखान मैं पहले भी कर चुकी हूं सो इनके बारे में ज्यादा कुछ कहने की जरूरत नहीं। चूहों से तो सभी परेशान रहते हैं लेकिन ऐसा लगता है कि मुझे कोई विशेष श्राप मिला है जैसे राम को चौदह वर्ष का वनवास मिला था ठीक वैसे ही मुझे भी दो सालों तक चूहों द्वारा प्रताड़ित किए जाने का श्राप किसी ने दिया है शायद। 

चूहे मारने की जितनी भी दवाइयां इस्तेमाल की मैंने चूहों की उम्र उतनी ही बढ़ती गई। मैं हरदम लोगों से चूहे मारने का उपाय पूछती रहती जैसे कोई मरीज छत्तीस डॉक्टरों के पास से अपने मर्ज का इलाज कराने में नाकाम होने पर किसी न किसी से बड़े और अच्छे डॉक्टर का पता पूछता फिरता है। आधी रात को जब चूहे कभी मेरे पेट पर कभी चादर से ढके मुंह के ऊपर गिरते तो मेरे प्राण सूख जाते थे। मैंने चूहों के मरने की उम्मीद छोड़ दी थी। लेकिन मुझे यह यकीन जरूर था कि इनके दहशत से एक दिन मैं जरूर मर जाऊंगी।

पिछले दिनों छुट्टियों में घर गई थी। तब मां ने चूहे मारने की एक दवा दी। उस दवा को देखकर मेरी हंसी छूट गई। मां ने मुझे आश्चर्य से देखते हुए पूछा- हंस क्यों रही हो। मैंने कहा मेरे कमरे में जो चूहे आते हैं तुम्हारे घर की चूहों की तरह नहीं हैं। मालगोदाम के चूहे आते हैं मेरे कमरे में, एकदम खाते-पीते घर के, और साथ में किसी ने उन्हें अमरत्व का वरदान भी दे रखा है। कोई भी दवा खिलाओ मरते ही नहीं, सैलरी के कुछ पैसे तो इन्हें मारने की दवा खरीदने में ही खत्म हो जाते हैं। मां बोली-इस दवा से तुम्हारे कमरे के चूहे जरूर मर जाएंगे। लेकिन मुझे यकीन नहीं हुआ।

घर से वापस लौटने पर मैंने बिस्किट के छोटे-छोटे टुकड़ों में नील पाउडर की तरह दिखने वाली चूहे मारने की दवा लगाकर कमरे में जगह-जगह रख दिया औऱ कमरा बंद कर ऑफिस चली गई। जब वहां से लौटी और कमरा खोली तो काफी निराश हो गई। बिस्किट के सभी टुकड़े उसी तरह उसी जगह पर पड़े हुए थे। रात में एक बार मेरी नींद खुली तो मैंने लाइट जलाकर देखा, बिस्किट के कुछ टुकड़े गायब थे। थोड़ी उम्मीद जगी कि शायद दवा काम कर जाए।

सुबह उठने के बाद मैं अखबार पढ़ रही थी कि अचानक मेरी नजर एक चूहे पर पड़ी। वो लड़खड़ाते हुए दीवार का किनारा पकड़कर चल रहा था। कभी लुढ़क कर गिर जाता कभी रूक जाता। उसकी आंखें कभी खुलती तो कभी बंद हो जाती। उस वक्त वह चूहा मुझे ठीक वैसे ही दिख रहा था जैसे कोई शराबी हाथ में दारू की बोतल लिए सड़क पर झूमते हुए और लड़खड़ाते हुए चलता है। मैंने कमरे का मुआयना किया तो देखा कि दूसरा चूहा बेड के नीचे मेरी चप्पल के पास लुढ़क रहा था जैसे देवदास पारो के घर की चौखट पर दारू पीकर लुढ़का हो। देखते ही देखते कुछ ही मिनट में दोनों चूहों के प्राण-पखेरू उड़ गए। यह देख मेरे आंखों से आंसू निकलने लगे (खुशी के नहीं गम के) और मैं अपने आप को सबसे बड़ी पापी समझने लगी। 

जमीन पर पड़े चूहों की लाश को मैं वैसे ही देख रही थी जैसे मैंने अपने दादा जी के शव को देखा था। मुझे बहुत रोना आ रहा था लेकिन सांत्वना देने वाला कोई भी नहीं था उस वक्त। मैंने दोनों चूहों को एक कागज पर उठाया। ठीक उसी वक्त मुझे अपनी दादी की एक बात याद आयी। उन्होंने जाने क्या सोच के एक बार बोला था कि जब वो मर जाएं तो उनकी फोटो खींच कर रख ली जाए। इन चूहों को भी याद करने के लिए मैंने उनकी फोटो खींच कर रख ली। उस दिन के बाद से कमरे में काफी सन्नाटा है। कूदने-फुदकने वाले दुनिया को अलविदा कह गए। जब भी कोई छूछूंदर मेरे कमरे में दिखती है मैं उससे ही पूछ लेती हूं कि इतना सन्नाटा क्यों है भाई।

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