शुक्रवार, 17 अक्तूबर 2014

भाई का साबुन..

वह भाई के साबुन से नहाने की जिद करती रही..मां ने उसके सिर पर दो लोटा पानी डालकर गाल पर दो थप्पड़ जड़ दिया और उसकी नाक, आंख, कान, मुंह को हाथों से ऐसा रगड़ा कि कोई और चीज होती तो उसका हुलिया बदल जाता।
 मां उसे वहीं छोड़ कर चली गई। वह जोर-जोर से रोती रही...शायद वैसे जैसे दादी की कहानियों में स्त्रियों के रोने पर जंगल की पत्तियां झड़ जाया करती थीं। जहां खड़ी होकर वह रो रही थी..वहांं भी तो एक नीम का पेड़ था...लेकिन उसका रूदन सुनकर एक भी पत्ती नहीं गिरी।

थोड़ी देर बाद मां अपने कमरे से तैयार होकर भाई को गोद में लेकर घर से बाहर कहीं चली गई। वह वहीं खड़ी होकर अभी भी रो रही थी। उसके देह का पानी सूख गया था। भाई का साबुन बगल में पड़ा था। लेकिन उसके लिए अब साबुन का कोई महत्व नहीं था।

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