रविवार, 6 अप्रैल 2014

कैसे लगता है धंधे पर बट्टा!!


लख्खू प्रजापति पेशे से कुम्हार है। पिछले पचास सालों से बाप-दादा के इस पुस्तैनी धंधे को सीने से लगाए बैठे हैं। देश में चुनाव की गर्मी है। किसी विशेष की हवा भी चल रही है। लेकिन इनकी झोपड़ी को यह हवा नहीं छूती। ना इनके जीवन में मोदी हैं.. ना ही कोई और पार्टी। आधुनिकता ने इनकी रोजी-रोटी पर बट्टा लगा दिया है।इतना की  मिट्टी के बर्तन रखे रह जाते हैं और लोग खरीदने नहीं जाते। स्थिति यह आ गयी है कि दो जून की रोटी के लिए इस उम्र में पत्नी के साथ दूसरों के खेतों एवं घरों में मजदूरी करते हैं।



दिन भर की मेहनत के बाद मिट्टी से गढ़े गए हैं ये सुन्दर मटके..शाम की हल्की धूप ले रहे हैं।
खुद का पैर पसारने की जगह नहीं है...लेकिन जितना भी जगह है उसमे उन्होंने मिट्टी के बर्तनों को करीने से सजा कर रखा है ताकि मेहनत पर पानी ना फिरे और ये नाजुक बर्तन सुरक्षित रहें।

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