बुधवार, 26 मार्च 2014

'बस' एक सनम चाहिए..



बस चल रही है। जितने बैठे हैं उससे कहीं ज्यादा खड़े हैं।पुरुष हैं, महिलाएं हैं, बच्चे हैं। कोई कहीं जा रहा है तो कोई कहीं। किसी को जल्दी पहुंचने की हड़बड़ी है तो कोई फुरसत को पीठ पर टांगे चल रहा है। कोई घर से बिना खाए निकला है तो कोई झगड़ा करके। जितने लोग उतने तरह की स्थितियां-परिस्थितियां। ड्राइवर गाने बजा रहा है। अल्का याज्ञनिक की आवाज के साथ कभी कुमार सानू तो कभी उदित नारायण को बदल रहा है। वह अपने मनचाहे गीत सुन रहा है। कुछ यात्री बजते हुए गाने के साथ गुनगुना रहे हैं तो कुछ की उंगलियां गाने की धुन पर सीट पर ही नाच रही हैं। किसी को गाने से सिर दर्द हो रहा है तो किसी को गाना बेहद उबाऊ लग रहा है।

 एक अपने बगल वाले के कहता है..इससे अच्छा होता कि कोई भक्ति गाना बजाता। दो लड़के कह रहे हैं.. लगता है इसके पास नए गानों का कलेक्शन नही है। कोई बिरहा सुनने की इच्छा जता रहा है जो ड्राइवर तक पहुंच नहीं रही है तो कोई..जो कि नींद में बार-बार अपना सिर बगल वाले के कंधे पर पटक रहा है, बुदबुदा रहा है कि साला ई का बजा रहा है..भनन-भनन लगाया है, नींद टूट जा रही है। 
दो-चार लोग उबकर जो कि मल्टीमीडिया मोबाइल के साथ ईयर फोन लेकर बैठे हैं, कान में खोंसते हैं और ढिच्चक..ढिच्चक सुनने लगते हैं। जो लोग ड्राइवर की पसंद को झेल रहे हैं उनके पास कोई और चारा नहीं है। ड्राइवर के साथ बेवफाई हुई है..उसका सनम उसे छोड़ कर चला गया है। ड्राइवर पचास किलोमीटर की दूरी के हिसाब से बेवफाई और बिछड़े सनम जैसे गानों को इकट्ठा कर के रखा है। बस में बैठे लोग यह उम्मीद लगाए बैठे हैं कि पांच-दस किलोमीटर तक एक के बाद एक ऐसे गाने बजने के बाद शायद सनम की जुदाई का भूत उतरे और गाना बदल जाये लेकिन प्रति किलोमीटर की रफ्तार से उम्मीदों पर पानी फिरता जा रहा है। 
 बस का माहौल बेवफाई मय हो गया। लोग चिड़चिड़ेपन का आंसू पीकर रह गए। बस जब अपने ठिकाने पर पहुंची तो सभी लोग भरभरा कर निकले।

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