शुक्रवार, 25 जनवरी 2013

ऐसे नहीं ऐसे...


बचपन में मां दादी नानी अक्सर हमें टोका करती थी..ठीक से बैठों क्या बूढ़ों की तरह बैठते हो कूबड़ निकल आएंगें…पैर क्यों घसीट कर चलते हो…लोग सोचेंगे पैर में कोई दिक्कत है…घोड़े की तरह हिनहिनाया ना करो..ठीक से खड़े रहो…ऐसे हकलाकर में में क्यों करते हो…क्या दांत की बत्तीसी दिखाते हो..वगैरह वगैरह …तब उनकी ऐसी बाते कलेजे में तीर की तरह चुभती थी…और बुरी लगती थी… कभी-कभी इतनी ज्यादा बुरी लगती थी कि हम पलट कर जवाब भी दे देते थे…कि हम ऐसे ही रहेंगे,करेंगे क्यों टोका करते हैं आप लोग…घर में अक्सर आते जाते डर बना रहता था कि किसी बात को लेकर फिर कोई टोक ना दे कि ऐसे खाओ..वैसे चलो
लेकिन हमनें कभी दादी-नानी के ऐसी नसीहतों को जिंदगी में नहीं उतारा..और हमेशा अपनी मनमानी करते हुए इन छोटी छोटी और गंदी आदतों को अपनी जिदगी में इस कदर शामिल कर लिए बड़े होनें के बाद भी ये हमेशा से हमारी आदतों का हिस्सा रह गयी..
लेकिन हम जब समाज में उठने बैठनें और लोगों से मिलने लगे तब पता चला कि दादी नानी क्यों टोका करती थी…कि ठीक से बैठो ढ़ंग से खाओ..और जितना गुस्सा कभी उनके टोका-टोकी पर आया करता था..उससे ज्यादा अब खुद पर आनें लगा कि इतने बड़े हो गए और हमें ये भी नहीं पता कि लोगों के बीच कैसे उठा बैठा और बोला जाय……मैगी चाऊमीन जैसी चीजें हम हमेशा दाल-भात की तरह ही खाते रह गए…और कभी दूसरों के टोकनें पर लज्जा का अनुभव हुआ… अन्त में हजारों रूपए खर्च करके हम पर्सनालिटी डेवलपमेंट का क्लास लेते हैं और अच्छा व्यक्तित्व बनानें का गुर सीखते हैं…पैसे खर्च कर के सीखे गए इस व्यक्तित्व का फायदा यह होता है कि हम इंटरव्यू में भी सलीके से खड़े रहने का तरकीब जान जाते है…आपने देखा और महसूस किया होगा..कि सदियों से ही मोहब्बत भी व्यक्तित्व को देख कर होती आ रही है…किसकी कौन सी अदा देखकर कब प्यार हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता…किसी की गजब वाली हंसी फिदा कर जाती है तो किसी की लुभावनी बातचीत या अच्छी चालढाल…
मेरी स्नातक स्तर की रुम मेट दिन भर खखारती रहती है..और चाय सुड़क-सुड़क कर तेज से खिंचती है…उसकी ये आदते बिल्कुल नागवार गुजरती है…मैंने उसे एक बार टोका कि यार कम से कम चाय ढ़ंग से पीना सीख लो…घर में तो कैसे भी चल जाता है..बाहर में लोगों के बीच यह सुड़कना अच्छा नहीं लगेगा…इतना बोलते ही वह चिढ़ गई जैसे मैनें उसकी आजादी छीनने की जुर्रत कर दी हो…और बोली मैं ऐसे ही करुंगी..जो मर्जी कर लो…तब मन ही मन हंसी आयी की हम भी अपनें बड़ों की बातों पर ऐसे ही कभी कभी जवाब दे दिया करते थे..लेकिन बात सैकड़ो की होती है नानी-दादी की..

1 टिप्पणी:

अनूप शुक्ल ने कहा…

रोचक पोस्ट! हमें तो आजतक तमाम बातों के लिये टोंका जाता है। हम हर बार वही दोहराते हैं। :)